पश्चिमी देशों के स्टूडेंट्स की तरह 17 से 24 आयुवर्ग के भारतीय युवाओं में सीखो और कमाओ का चलन बढ़ रहा है। गर्मियों में इंटर्नशिप और जॉब्स के बहाने अपने वर्क प्रोफाइल को मजबूत बनाने के इच्छुक छात्र-छात्रएं पूरी रणनीति के साथ इस क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं। कम समयावधि के लिए युवाओं में इंटर्नशिप और समरजॉब्स के ट्रेंड के बारे में बता रहे हैं पूनम जैन और विमल चंद्र जोशी
आईआईएम लखनऊ के अनुराग सिंह ने इस बार अपनी समर इंटर्नशिप के लिए किसी बड़े कॉरपोरेट हाउस की जगह छोटी फिल्म प्रोडय़ूसिंग यूनिट में काम करने का मन बनाया है। उनके अनुसार, ‘ऐसा करना उन्हें बेहतर प्रोफेशनल बनने में मदद करेगा। यहां तक कि आजकल नौकरी के समय नियुक्तिकर्ता भी सामान्य स्किल्स के अलावा विभिन्न क्षेत्रों का अनुभव रखने वाले लोगों के साथ काम करना पसंद करते हैं।’ करोड़ीमल कॉलेज में बीए अंतिम वर्ष की छात्र अंतरा शर्मा के अनुसार आजकल छात्र-छात्रएं अपनी छुट्टियों को खाली बैठकर बिताना पसंद नहीं करते। कुछ सीखने और कमाने की ललक युवाओं में छुट्टियों में काम करने की प्रेरणा को बढ़ा रही है।
इंटर्नशिप करना एक कला है
सही इंटर्नशिप हासिल करने की प्रक्रिया पूरी तैयारी की मांग करती है। दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड कॉमर्स में अंतिम वर्ष के जर्नलिज्म के छात्र भानू जोशी के अनुसार, वह अमूमन छात्रों के द्वारा पसंद किए जाने वाले अखबार और टीवी चैनल रूट की ओर जाना नहीं चाहते थे। ‘मैं योजना निर्माण और उसके लागू होने की प्रक्रिया से वाकिफ होना चाहता हूं। इसलिए मैंने शोध क्षेत्र में काम करने का फैसला लिया। बतौर स्टूडेंट, मेरे लिए विभिन्न विषयों की समझ होना बेहतर रहेगा।’ अपने इंटर्नशिप प्रोग्राम के तहत भानू ने गैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर सिविल सोसायटी के प्रशासनिक और नीति सुधार प्रोजेक्ट पर काम करना चुना और वहां 1947 के बाद लागू हुई विभिन्न नीतियों का अध्ययन किया।
उनके अनुसार, ‘इससे मुझे काफी मदद मिली और विभिन्न क्षेत्रों जैसे स्वास्थ्य सुविधाएं, निजी-व सार्वजनिक क्षेत्र आदि फायदा मिला के बारे में जानने को मिला। अखबार में किसी एक इवेंट को कवर करते समय इतनी जानकारी मिलना संभव नहीं हो पाता। सीबीएसई के पूर्व निदेशक और एजूकेशन सिस्टम के सलाहकार जी. बाल सुब्रह्मण्यम के अनुसार, ‘एक विद्यार्थी को संगठन की ब्रांड वैल्यू से प्रभावित नहीं होना चाहिए। इंटर्नशिप के इच्छुकों की पहली कोशिश यह जानने की होनी चाहिए कि संस्थान से उसे दो से तीन महीने की अवधि में कितना कुछ सीखने को मिल सकता है।’
News Source : http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/jobscarrier/67-71-107530.html
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